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02:07, 6 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
झुनक स्याम की पैजनियाँ ।
जसुमति-सुत कौ चलन सिखावति, अँगुरी गहि-गहि दोउ जनियाँ ॥
स्याम बरन पर पीत झँगुलिया, सीस कुलहिया चौतनियाँ ।
जाकौ ब्रह्मा पार न पावत, ताहि खिलावति ग्वालिनियाँ ॥
दूरि न जाहु निकट ही खेलौ, मैं बलिहारी रेंगनियाँ ।
सूरदास जसुमति बलिहारी, सुतहिं खिलावति लै कनियाँ ॥
भावार्थ :-- श्यामसुन्दर की पैंजनी रुनझुन कर रही है । (माता रोहिणी और) मैया यशोदा--दोनों जनी अँगुली पकड़ कर अपने पुत्र को चलना सिखला रही है । (कन्हाई के)श्याम रंग के शरीर पर पीला कुर्ता है और मस्तक पर चौकोर टोपी है । जिसका पार (सृष्टिकर्ता) ब्रह्मा जी भी नहीं पाते, (आज) उसी (मोहन) को गोपियाँ खेला रही हैं । (मैया कहती है)-`लाल! मैं तुम्हारे रिंगण (घुटनों सरकने) पर बलिहारी हूँ, दूर मत जाओ ! (मेरे) पास ही खेलो!' सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा जी अपने पुत्र पर न्योछावर हो रही हैं, वे उन्हें गोद में लेकर खेला रही हैं ।