{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
सोच रहा
चुप बैठा धुनिया
भीड़-भाड़ वह
चहल-पहल वहबंद बन्द द्वार का एक महल वह
ढोल मढ़ी-सी लगती दुनिया
मेहनत के मुंह मुँहबंधा बँध मुसीका घुटता जाता गला खुशी का
ताड़ रहा है सब कुछ गुनिया
फैला भीतर तक तक सन्नाटा अंधियारों ने सब कुछ पाटा
कहाँ -कहाँ से
टूटी पुनिया
</poem>