भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 13 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
भक्त सुदामा ब्रह्मण थे,
+
             :::'''वन्दना'''
                  रहते थे देश विदर्भ नगर,
+
मीत प्रभु के सच्चे थे,
+
                पत्नि भी पतिव्रता थी घर |
+
कुछ किस्सा उनका बयां करू,
+
                छांया दारिद्र की घर पर थी,
+
वो भगवत रूप परायण थे,
+
                आशा उन्हीं पर निर्भर थी |
+
थी बुद्धिमती पतिव्रता वाम,
+
                गुणवान चतुर सुन्दर नारी,
+
पति इच्छा अनुकूल चले,
+
            थी श्रीपति को अतिशय प्यारी |
+
वो दुःख सुख सभी भोगती थी,
+
              पर बात न जिह्वा पर आती,
+
नित मीठे बैन बोलती थी,
+
            नहीं ध्यान बुरा दिल पर लाती |
+
इक रोज कहा कर जोर दोऊ,
+
             पति भूख से प्राण निकलते हैं,
+
छोटे-छोटे छौना मोरे,
+
            बिन अन जल के कर मलते हैं |
+
यह दशा देख अकुलाय रही,
+
                  नहीं बच्चों को भी रोटी है,
+
रह सकते नहीं  प्राण इनके,
+
                अति कोमल है, वे छोटी हैं |
+
इसलिए कृपा कर प्राणनाथ,
+
            तुम नमन करो अविनाशी को,
+
मत करो देर, बस जाय कहो,
+
              सब हाल द्वारिका वासी को |
+
वह सखा आपके प्रेमी हैं,
+
                      देखत ही सनमान करें,
+
सब दूर व्यथा हो जावेगी,
+
                कर कृपा तुम्हे धनवान करें |   
+
'''सुदामा- द्वारपाल से'''
+
  
महाराज कृष्ण  क्या करते है, है उनसे काम मेरा भाई।
+
बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें।
हम बचपन के सखा मित्र, वह होते परम गुरू  भाई।।  
+
श्रीगुरु! राह कृपामय हो, हम पे नज़रें गुण को नित गावें॥
जाकर के उनसे  खबर करो, यह हाल बता देना सारा।
+
शारद शेष  महेश नमो, बलिहारी गणेश हमेश मनावें।
मैं ब्राह्मण द्रविड़ देश का हूं, दिल ख्याल करा देना सारा।।
+
बुद्धि प्रकाश करो घट भीतर, कृष्ण-सुदामा चरित्र  बनावें॥
  
'''द्वारपाल- कृष्ण से'''
+
राम-राम  जप बावरे साधन यही विवेक।
 +
:::इस साधन की ओट से तर गए भक्त अनेक॥
 +
परम सनेही राम प्रिय सुप्रिय गुरु महाराज।
 +
:::चरन परहुँ  कर जोर कर वन्दहुँ संत समाज॥
 +
प्रभु चरित्र में चित्त रचे जन्म जन्म यहि काम।
 +
:::भक्ति सदा सतसंग उर कृपा करहुँ श्रीराम॥
 +
बंदहूँ शंकर-सुत हरखि मंगल मयी महेश।
 +
:::सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश॥
 +
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान
 +
:::नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान॥
 +
प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान।
 +
:::जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण॥
  
जा करके द्वारपाल ने जब श्रीकृष्ण चन्द्र से  हाल कहा।
+
लिखूं सुदामा की कथा यथा बुद्धि है मोर।
इक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा खड़ा कहता है श्री गोपाल कहां।
+
करहूँ कृपा शिवदीन पर नागर नन्द किशोर॥  
चाहता है प्रभु से मिलने को  प्रभु दर्शन का अनुरागी है।
+
</poem>
है मस्त  गृहस्थ में  रह करके  जानो सच्चा  वैरागी है।।
+
 
+
वस्त्र फटे अरु दीन दशा, इक ब्राह्मण दीन पुकारत है।
+
द्वार खड्यो चहुं ओर लखे वह निर्मल नेक कहावत है।।
+
पास नहीं कछु भी धन दौलत बौलत ही मन भावत है।
+
कृष्ण रटे मुख से निशि-वासर नाम सुदामा बतावत है।।
+
 
+
आप सिवा न चहे अरु को, हम को वह दीखत है अति ज्ञानी।
+
हर्ष विषाद नहीं कछु व्यापत, कृष्ण सिवा कछु लाभ न हानी।।
+
है मति शु़द्ध पवित्र महा अति सार  सुधामय  बोलत  बानी।
+
कौन पता किस ग्राम बसे अरु दीख रहा मति सात्विक प्रानी।।
+
 
+
 
+
   
+
<poem>
+

15:14, 22 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

             :::वन्दना

बन्दहुँ राम जो पूरण ब्रह्म है, वे ही त्रिलोकी के ईश कहावें।
श्रीगुरु! राह कृपामय हो, हम पे नज़रें गुण को नित गावें॥
शारद शेष महेश नमो, बलिहारी गणेश हमेश मनावें।
बुद्धि प्रकाश करो घट भीतर, कृष्ण-सुदामा चरित्र बनावें॥

राम-राम जप बावरे साधन यही विवेक।
इस साधन की ओट से तर गए भक्त अनेक॥
परम सनेही राम प्रिय सुप्रिय गुरु महाराज।
चरन परहुँ कर जोर कर वन्दहुँ संत समाज॥
प्रभु चरित्र में चित्त रचे जन्म जन्म यहि काम।
भक्ति सदा सतसंग उर कृपा करहुँ श्रीराम॥
बंदहूँ शंकर-सुत हरखि मंगल मयी महेश।
सकल सृष्टि पूजन करे तुमरी सदा गणेश॥
नमन करत हूँ शारदा सकल गुणन की खान
नमहूँ सुकवि पुनि देव सब चरन कमल को ध्यान॥
प्रभु चरित्र आनन्द अति रुचिकर करहूँ बखान।
जाही सुने चित देय नर पावत पद निर्वाण॥

लिखूं सुदामा की कथा यथा बुद्धि है मोर।
करहूँ कृपा शिवदीन पर नागर नन्द किशोर॥