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एक नदी मेरे भीतर / राजेश श्रीवास्तव
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एक है युधिष्ठिर, एक दुर्योधन
दो
हिस्सोंष
हिस्सों
में बँटा है ये मन
जब भी यह दुर्योधन बचा है
उसने बस कुचक्र ही रचा है
Lalit Kumar
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