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+ | सूरज से जो प्रीत | ||
+ | हँसती जाये | ||
+ | गुल दाउदी पीत | ||
+ | चोंच से चुना | ||
+ | तिनकों का संसार | ||
+ | सजा घरौंदा | ||
+ | पाखी-दम्पती ख़ुश | ||
+ | दानों से भरी | ||
+ | झूमती हवाओं में | ||
+ | बाली सोनाली | ||
+ | ज़रा-सी आहट से | ||
+ | बाजरा खाती | ||
+ | गिलहरी भाग ली | ||
+ | कूका कोकिल | ||
+ | सहकार वृक्ष पे | ||
+ | बाग भौंचक्का | ||
+ | दर्पण देख रही | ||
+ | नव-वल्लरी | ||
+ | फूलों के भार झुकी | ||
+ | हँसता जाता | ||
+ | निर्जन टीले खड़ा | ||
+ | एक करील | ||
+ | सजा रही ॠतु-माँ | ||
+ | पाकर-गात | ||
+ | मूँगा-रँग के पात | ||
+ | किसे बुलाती | ||
+ | किसलय लपेटे | ||
+ | अल्प-वसना | ||
+ | मोहक वन-कन्या | ||
+ | केशों में सजा | ||
+ | लाल गुड्हल-फूल | ||
+ | हँसती उर्वी | ||
+ | रंगों से सराबोर | ||
+ | इठला रहीं | ||
+ | शोखियाँ वसन्त की | ||
+ | फूलों से भरे | ||
+ | गलबाँही दे, खड़े | ||
+ | दो कनेर ये | ||
+ | आम्र-पल्लव | ||
+ | बने बंदन वार | ||
+ | ‘घराती’ अमराई | ||
+ | बावली बनीं | ||
+ | तितलियाँ सज के | ||
+ | अगवानी में | ||
+ | चूनरिया धानी में | ||
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+ | ‘वर’ वसन्त | ||
+ | केसरिया पाग में | ||
+ | फूलों का ‘जामा’ | ||
+ | बारात को मनाते | ||
+ | भौंरा हुआ दीवाना | ||
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09:02, 6 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
वासन्ती भोर
‘बामनी’ बया बोली
पत्तों में छिपी
‘बिटौड़े’ चढ़ गई
फूलों से भरी
तुरई-बेल हरी
चैत आ गया
फिरे खोजती तृन
उतावली में
चुनमुन गौरैया
ध्रती ने की
सूरज से जो प्रीत
हँसती जाये
गुल दाउदी पीत
चोंच से चुना
तिनकों का संसार
सजा घरौंदा
पाखी-दम्पती ख़ुश
दानों से भरी
झूमती हवाओं में
बाली सोनाली
ज़रा-सी आहट से
बाजरा खाती
गिलहरी भाग ली
कूका कोकिल
सहकार वृक्ष पे
बाग भौंचक्का
दर्पण देख रही
नव-वल्लरी
फूलों के भार झुकी
हँसता जाता
निर्जन टीले खड़ा
एक करील
सजा रही ॠतु-माँ
पाकर-गात
मूँगा-रँग के पात
किसे बुलाती
किसलय लपेटे
अल्प-वसना
मोहक वन-कन्या
केशों में सजा
लाल गुड्हल-फूल
हँसती उर्वी
रंगों से सराबोर
इठला रहीं
शोखियाँ वसन्त की
फूलों से भरे
गलबाँही दे, खड़े
दो कनेर ये
आम्र-पल्लव
बने बंदन वार
‘घराती’ अमराई
बावली बनीं
तितलियाँ सज के
अगवानी में
चूनरिया धानी में
‘वर’ वसन्त
केसरिया पाग में
फूलों का ‘जामा’
बारात को मनाते
भौंरा हुआ दीवाना
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