Last modified on 27 अगस्त 2022, at 03:46

"प्रेमपत्र को विदाई / अलेक्सान्दर पूश्किन" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
 
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
 
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
 
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
लाख पिघल रही थी ऎसे मानो हो वह रूठी-सी
+
लाख पिघल रही थी ऐसे मानो हो वह रूठी-सी
 
   
 
   
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
 
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।
 
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।
  
 +
1825
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 +
 +
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
 +
            Александр Пушкин
 +
        СОЖЖЕННОЕ ПИСЬМО
 +
 +
Прощай, письмо любви! прощай: она велела.
 +
Как долго медлил я! как долго не хотела
 +
Рука предать огню все радости мои!..
 +
Но полно, час настал. Гори, письмо любви.
 +
 +
Готов я; ничему душа моя не внемлет.
 +
Уж пламя жадное листы твои приемлет...
 +
Минуту!.. вспыхнули! пылают — легкий дым
 +
Виясь, теряется с молением моим.
 +
 +
Уж перстня верного утратя впечатленье,
 +
Растопленный сургуч кипит... О провиденье!
 +
Свершилось! Темные свернулися листы;
 +
На легком пепле их заветные черты
 +
 +
Белеют... Грудь моя стеснилась. Пепел милый,
 +
Отрада бедная в судьбе моей унылой,
 +
Останься век со мной на горестной груди...
 +
 +
1825
 
</poem>
 
</poem>

03:46, 27 अगस्त 2022 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अलेक्सान्दर पूश्किन  » संग्रह: यह आवाज़ कभी सुनी क्या तुमने
»  प्रेमपत्र को विदाई

विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था
 
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न छोड़ी राह
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने
 
अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल
है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल
भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर
मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर
 
क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुँआ
वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ
लिफ़ाफ़े पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की
लाख पिघल रही थी ऐसे मानो हो वह रूठी-सी
 
फिर ख़त्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले
बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले
पीड़ा तीखी उठी हृदय में औ' उदास हो गया मन
जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण ।।

1825
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Александр Пушкин
        СОЖЖЕННОЕ ПИСЬМО

Прощай, письмо любви! прощай: она велела.
Как долго медлил я! как долго не хотела
Рука предать огню все радости мои!..
Но полно, час настал. Гори, письмо любви.

Готов я; ничему душа моя не внемлет.
Уж пламя жадное листы твои приемлет...
Минуту!.. вспыхнули! пылают — легкий дым
Виясь, теряется с молением моим.

Уж перстня верного утратя впечатленье,
Растопленный сургуч кипит... О провиденье!
Свершилось! Темные свернулися листы;
На легком пепле их заветные черты

Белеют... Грудь моя стеснилась. Пепел милый,
Отрада бедная в судьбе моей унылой,
Останься век со мной на горестной груди...

1825