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इच्छाएँ / कंस्तांतिन कवाफ़ी
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,
09:09, 2 जुलाई 2012
{{KKCatKavita}}
<poem>
जैसे
कि
कि—
बे-वक़्त मर गए लोगों के ख़ूबसूरत जिस्म,
किसी शानदार मक़बरे में उदासी के बीच क़ैद
अनिल जनविजय
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