भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उसका देखना / कुमार अनुपम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनुपम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> बी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=कुमार अनुपम | |रचनाकार=कुमार अनुपम |
17:37, 1 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
बीमार था भाई और अस्पताल भरा हुआ
खुले आकाश के नीचे
नसीब हुआ उसे किसी तरह एक बेड
बेहद जद्दोजहद के बाद
ऐसा आपातकाल था
ड्रिप की सीली-सी आवाज़ थी जब बुदबुदाया—
हमारे देखने की सीमा तो देखिए !
वह चाँद देख रहा था और तारे
अब उसका बोलना बर्फ़ हो रहा था—
और जमीन पर थोड़ी ही दूरी पर
चलता हुआ आदमी तो ओझल हो जाता है
यकायक हमारी निग़ाह से
भैया, देखिए जरा कितने पेंच हैं इस दुनिया में !
वह बहुत मासूम दिख रहा था और ख़तरनाक तरीके से गम्भीर
अब मैं
उसे बीमार कहकर शर्मिंदा हो रहा हूँ ।