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"एक रोगिणी बालिका के प्रति / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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सीखा है तारे ने उमँगना जैसे धूप ने विकसना | सीखा है तारे ने उमँगना जैसे धूप ने विकसना |
16:37, 8 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
सीखा है तारे ने उमँगना जैसे धूप ने विकसना
हरी घास ने पैरों में लोट-लोट बिछलना-विलसना,
और तुम ने-पगली बिटिया-हँसना, हँसना, हँसना,
सीखा है मेरे भी मन ने उमसना, मेरी आँखों ने बरसना,
और मेरी भावना ने
आशीर्वाद के सुवास-सा तुम्हारे आस-पास बसना!
दिल्ली, सितम्बर, 1954