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स्मृतियाँ / दीपक मशाल

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स्मृतियाँ अल्हड़ होती हैं अक्खड़ होती हैं
वो रहती जरूर हैं संचित
उन्हें पालने, पोसने और बसाए रखने की
जिम्मेवारी उठाये जाने के बाद भी
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वो नहीं सुनतीं दिमाग की
बिलकुल एक गैरजिम्मेवार बेटे की तरह
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