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"आन्ना अख़्मातवा के लिए-4 / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
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अपने पालक की आदी हो जाती है ततैया<br> | अपने पालक की आदी हो जाती है ततैया<br> |
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अपने पालक की आदी हो जाती है ततैया
उसकी जात ऎसी ही होती है, भइया
पर तेईस वर्षों से पिछले मैं मलंग
गिन रहा हूँ अपनी इस अख़्मातवा के डंक
(रचनाकाल :1930)