"राजेश शर्मा की आत्महत्या / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर
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अच्छे साहित्य से पैदा हुए अच्छे समाज की बाते की थीं | अच्छे साहित्य से पैदा हुए अच्छे समाज की बाते की थीं | ||
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तो ऊँचाई आपको ढकेल देती है | तो ऊँचाई आपको ढकेल देती है | ||
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यह अलग ही कोई चोट है | यह अलग ही कोई चोट है | ||
जो ख़ुद पर ख़ुद ही मारनी पड़ती है राजेश की तरह | जो ख़ुद पर ख़ुद ही मारनी पड़ती है राजेश की तरह | ||
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आत्महंता पद्धति को बहुत बार बहुत से कवियों ने | आत्महंता पद्धति को बहुत बार बहुत से कवियों ने | ||
आजमाया है डिक्टेटर की तरह | आजमाया है डिक्टेटर की तरह | ||
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जो उन्होंने जीवन को चोट पहुँचाने से पहले | जो उन्होंने जीवन को चोट पहुँचाने से पहले | ||
लोक से अपने संवाद के लिए रची थी | लोक से अपने संवाद के लिए रची थी | ||
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इसलिए आत्महत्या के भी काम आई एक दिन | इसलिए आत्महत्या के भी काम आई एक दिन | ||
जैसे अपनी मृत्यु ही सारी चीज़ों पर अंतिम पर्दा हो । | जैसे अपनी मृत्यु ही सारी चीज़ों पर अंतिम पर्दा हो । | ||
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03:13, 30 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
लखनऊ में राजेश की आत्महत्या से पहले
हम बहुत सारे कवि-लेखक
पीने-खाने के बाद दरी पर चादर बिछाकर लेटे
और गपियाते रहे पूरी रात
हुसैनगंज वाले ग्यारहवीं मंज़िल के फ़्लैट में
जिसे छोड़कर
गोमती नगर में उसने शानदार घर बनवा लिया था बाद में
एक दिन गोमती नगर वाले शानदार घर को भी छोड़कर
अपना साफ़-सुथरा आकर्षक शरीर लेकर
चिड़ियाघर और सिविल अस्पताल के बीच
सूचना-विभाग को छोड़कर
वही राजेश शर्मा
हुसैनगंज वाली ग्यारहवीं मंजिल पर जा पहुँचा
जहाँ दरी पर चादर बिछाकर
अच्छे साहित्य से पैदा हुए अच्छे समाज की बाते की थीं
हमने
लिफ़्ट पर चढ़कर गया वह
कूदकर नीचे आने के लिए
जब दूसरे वह ऊँचाई नहीं देते
जहाँ आप ख़ुद का घण्टाघर बनाए हुए होते हैं
तो ऊँचाई आपको ढकेल देती है
अपने को सबसे अलग समझने की
यह अलग ही कोई चोट है
जो ख़ुद पर ख़ुद ही मारनी पड़ती है राजेश की तरह
आत्महंता पद्धति को बहुत बार बहुत से कवियों ने
आजमाया है डिक्टेटर की तरह
लेकिन उनकी कविता की भाषा ही आखिर काम आई
जो उन्होंने जीवन को चोट पहुँचाने से पहले
लोक से अपने संवाद के लिए रची थी
ज़िन्दगी बहुत-सी चीज़ों के काम आती है
इसलिए आत्महत्या के भी काम आई एक दिन
जैसे अपनी मृत्यु ही सारी चीज़ों पर अंतिम पर्दा हो ।