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अभी मेपल वृक्ष के | अभी मेपल वृक्ष के | ||
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नन्हा शिशु हो | नन्हा शिशु हो | ||
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इतना नाज़ुक | इतना नाज़ुक | ||
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मेघों के बीच गुम हो जाने का | मेघों के बीच गुम हो जाने का | ||
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इच्छुक वो | इच्छुक वो | ||
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गर्मी की | गर्मी की | ||
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उस सुबह को पक्षी | उस सुबह को पक्षी | ||
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घंटी जैसे घनघना रहे थे | घंटी जैसे घनघना रहे थे | ||
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नए उमगे पत्तों पर धूप | नए उमगे पत्तों पर धूप | ||
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और बेड़े पर पड़े हुए थे | और बेड़े पर पड़े हुए थे | ||
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मछली के ढेर | मछली के ढेर | ||
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शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से | शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से | ||
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वे चमचमा रहे थे | वे चमचमा रहे थे | ||
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01:37, 17 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
ऊषा
अभी मेपल वृक्ष के
हाथों में थी
सो रही थी यूँ जैसे कोई
नन्हा शिशु हो
और चन्द्रमा झलक रहा था
इतना नाज़ुक
मेघों के बीच गुम हो जाने का
इच्छुक वो
गर्मी की
उस सुबह को पक्षी
घंटी जैसे घनघना रहे थे
नए उमगे पत्तों पर धूप
बिछल रही थी
और बेड़े पर पड़े हुए थे
मछली के ढेर
शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से
वे चमचमा रहे थे