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"हसरतों के हंस / नीना कुमार" के अवतरणों में अंतर

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फिर सराबों<ref>मृगतृष्णा</ref> के मुसाफिर, बेखबर ही सही
  
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08:53, 21 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

वो न हो दोस्त सही, तो चारागर<ref>इलाज करनेवाला</ref> ही सही
दवा-ए-मर्ज़ है उसकी एक नज़र ही सही

वीराँ रहगुज़र पर, हों कोई क्यों मुज़तर<ref>बेचैन</ref>
के हमनवा<ref>एक जैसी आवाज़</ref> न सही, तो हमसफ़र ही सही

हसरतों के हंसों के नशेमन<ref>घर</ref> का शहर है
फलक-ओ-ज़मी न सही, सागर ही सही

यूँ सुकूत<ref>ख़ामोशी</ref> से, उन्होंने है कोई बात कही
वो मुक़म्मल हो गई, मुख़्तसर<ref>छोटी</ref> ही सही

अब आबशारों<ref>झरना</ref> से, अपनी भी आशनाई<ref>जान पहचान</ref> है
फिर सराबों<ref>मृगतृष्णा</ref> के मुसाफिर, बेखबर ही सही

वर्क-दर-वर्क<ref>पन्ना-पन्ना</ref> बिखरती रही है हस्ती मेरी
के उसे दहर न सही ग़म-ए-दहर<ref>दुनिया का ग़म</ref> ही सही

शब्दार्थ
<references/>