{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatNazm}}<poem>तुम्हारी कब्र पर मैंफ़ातेहा पढ़ने नही आया,
मुझे मालूम था, तुम मर नही सकतेतुम्हारी कब्र पर मैं<br>मौत की सच्ची खबरफ़ातेहा पढ़ने नही आयाजिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,वो तुम कब थे?कोई सूखा हुआ पत्ता,<br><br>हवा मे गिर के टूटा था ।
मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते<br>मेरी आँखेतुम्हारी मौत की सच्ची खबर<br>मंज़रो मे कैद है अब तकजिसने उड़ाई थीमैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँवो झूठा था,<br>वही हैवो तुम कब थे?<br>कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।<br><br>
कहीं कुछ भी नहीं बदला,तुम्हारे हाथ मेरी आँखे<br>तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक<br>उंगलियों में सांस लेते हैं,मैं जो लिखने के लिये जब भी देखता हूँकागज कलम उठाता हूं, सोचता हूँ<br>वो, वही है<br>जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।<br><br>तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |
कहीं कुछ बदन में मेरे जितना भी नहीं बदलालहू है,वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,<br>तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों आवाज में सांस लेते हैंछुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,<br>मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,<br>तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में पाता हूं तुम |<br><br>
बदन में मेरे जितना भी लहू है,<br>वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,<br>मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,<br>मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |<br><br> तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,<br>वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,<br>तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,<br>कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |<br><br/poem>