Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | ||
+ | |संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद | ||
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आँख बचाकर न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला। | आँख बचाकर न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला। | ||
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कहाँ मिलोगे? किसी विजन में? - न हो भीड़ का जब रेला॥ | कहाँ मिलोगे? किसी विजन में? - न हो भीड़ का जब रेला॥ | ||
दूर! कहाँ तक दूर? थका भरपूर चूर सब अंग हुआ। | दूर! कहाँ तक दूर? थका भरपूर चूर सब अंग हुआ। | ||
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दुर्गम पथ मे विरथ दौड़कर खेल न था मैने खेला। | दुर्गम पथ मे विरथ दौड़कर खेल न था मैने खेला। | ||
कुछ कहते हो \'कुछ दुःख नही\', हाँ ठीक, हँसी से पूछो तुम। | कुछ कहते हो \'कुछ दुःख नही\', हाँ ठीक, हँसी से पूछो तुम। | ||
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प्रश्न करो ढेड़ी चितवन से, किस किसको किसने झेला? | प्रश्न करो ढेड़ी चितवन से, किस किसको किसने झेला? | ||
आने दो मीठी मीड़ो से नूपुर की झनकार, रहो। | आने दो मीठी मीड़ो से नूपुर की झनकार, रहो। | ||
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गलबाहीं दे हाथ बढ़ाओ, कह दो प्याला भर दे, ला! | गलबाहीं दे हाथ बढ़ाओ, कह दो प्याला भर दे, ला! | ||
निठुर इन्हीं चरणों में मैं रत्नाकर हृदय उलीच रहा। | निठुर इन्हीं चरणों में मैं रत्नाकर हृदय उलीच रहा। | ||
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पुलकिल, प्लावित रहो, बनो मत सूखी बालू का वेला॥ | पुलकिल, प्लावित रहो, बनो मत सूखी बालू का वेला॥ | ||
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00:21, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
आँख बचाकर न किरकिरा कर दो इस जीवन का मेला।
कहाँ मिलोगे? किसी विजन में? - न हो भीड़ का जब रेला॥
दूर! कहाँ तक दूर? थका भरपूर चूर सब अंग हुआ।
दुर्गम पथ मे विरथ दौड़कर खेल न था मैने खेला।
कुछ कहते हो \'कुछ दुःख नही\', हाँ ठीक, हँसी से पूछो तुम।
प्रश्न करो ढेड़ी चितवन से, किस किसको किसने झेला?
आने दो मीठी मीड़ो से नूपुर की झनकार, रहो।
गलबाहीं दे हाथ बढ़ाओ, कह दो प्याला भर दे, ला!
निठुर इन्हीं चरणों में मैं रत्नाकर हृदय उलीच रहा।
पुलकिल, प्लावित रहो, बनो मत सूखी बालू का वेला॥