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"फिर भी जीवन / मनोज कुमार झा" के अवतरणों में अंतर

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इतनी कम ताकत से बहस नहीं हो सकती
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           अर्जी पर दस्तखत नहीं हो सकते
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इतनी कम ताकत से तो प्रार्थना भी नहीं हो सकती
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इतनी कम ताक़त से तो प्रार्थना भी नहीं हो सकती
 
इन भग्न पात्रों से तो प्रभुओं के पाँव नहीं धुल सकते
 
इन भग्न पात्रों से तो प्रभुओं के पाँव नहीं धुल सकते
 
फिर भी घास थामती है रात का सिर और दिन के लिए लोढ़ती है ओस
 
फिर भी घास थामती है रात का सिर और दिन के लिए लोढ़ती है ओस
चार अँगुलियाँ गल गई पिछले हिमपात में कनिष्ठा लगाती है काजल।
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चार अँगुलियाँ गल गई पिछले हिमपात में कनिष्ठा लगाती है काजल ।
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14:53, 7 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

इतनी कम ताक़त से बहस नहीं हो सकती
           अर्जी पर दस्तख़त नहीं हो सकते
इतनी कम ताक़त से तो प्रार्थना भी नहीं हो सकती
इन भग्न पात्रों से तो प्रभुओं के पाँव नहीं धुल सकते
फिर भी घास थामती है रात का सिर और दिन के लिए लोढ़ती है ओस
चार अँगुलियाँ गल गई पिछले हिमपात में कनिष्ठा लगाती है काजल ।