भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरित फौवारों सरीखे धान / नामवर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
हाशिये-सी विंध्य-मालाएँ | हाशिये-सी विंध्य-मालाएँ | ||
नम्र कन्धों पर झुकीं तुम प्राण | नम्र कन्धों पर झुकीं तुम प्राण | ||
− | सप्तवर्णी | + | सप्तवर्णी केश फैलाए |
जोत का जल पोंछती-सी छाँह | जोत का जल पोंछती-सी छाँह | ||
धूप में रह-रहकर उभर आए | धूप में रह-रहकर उभर आए | ||
− | स्वप्न के | + | स्वप्न के चिथड़े नयन-तल आह |
इस तरह क्यों पोंछते जाएँ ? | इस तरह क्यों पोंछते जाएँ ? | ||
</poem> | </poem> |
03:46, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
हरित फौवारों सरीखे धान
हाशिये-सी विंध्य-मालाएँ
नम्र कन्धों पर झुकीं तुम प्राण
सप्तवर्णी केश फैलाए
जोत का जल पोंछती-सी छाँह
धूप में रह-रहकर उभर आए
स्वप्न के चिथड़े नयन-तल आह
इस तरह क्यों पोंछते जाएँ ?