भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कौ ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीरदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) |
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatPad}} | {{KKCatPad}} | ||
− | {{ | + | {{KKCatBhojpuriRachna}} |
<poem>कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।। | <poem>कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।। | ||
चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।। | चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।। |
17:28, 24 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।।
चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।।
आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे, नैनन आँसू टूटल हो।। 3।।
चारि जने मिलि खाट उठाइन, चहुँ दिसि धू-धू उठल हो।। 4।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता टूटल हो।। 5।।