भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मौसम बउराइल बा / ब्रजभूषण मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem> थर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=ब्रजभूषण मिश्र
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

14:53, 31 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

थरथरात दसो दिसा, रितु तवन आइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
एह साल हरसिंगार रो-रो के झर गइल।
देखी वसंत फेर आवे से डर गइल॥
लाल गाल फगुआ के खून से पोताइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
धू-धू जरे सगरो गाँव-घर भइल मसान।
एक दुअरा, ओह अंगना अखरेरे जाए प्रान॥
चउपाली कउड़ा पर जिनगी बोझाइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
इहवाँ हर गाछी पर बा बसेर प्रेतन के।
फाटल दरार हाल सोख गइल खेतन के॥
सूखल सरोवर, कमल-दल मउराइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥
खुसाइल भोर काहे भैरवा अलापेला?
हँसुआ बिआह, गीत खुरपी ना भावेला॥
जइसे हर कुइयाँ में भंगिया घोराइल बा।
पगलाइल पछेया आ मौसम बउराइल बा॥