भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उलाहना / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय }} नहीं, नहीं, नहीं ! मैंने तुम्हें आँखों की ओट क...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 
|रचनाकार=अज्ञेय
 +
|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
नहीं, नहीं, नहीं !
+
<poem>
 
+
नहीं, नहीं, नहीं!
+
  
 
मैंने तुम्हें आँखों की ओट किया  
 
मैंने तुम्हें आँखों की ओट किया  
 
+
पर क्या भुलाने को?  
पर क्या भुलाने को ?  
+
 
+
 
मैंने अपने दर्द को सहलाया  
 
मैंने अपने दर्द को सहलाया  
 
+
पर क्या उसे सुलाने को?  
पर क्या उसे सुलाने को ?  
+
 
+
+
  
 
मेरा हर मर्माहत उलाहना  
 
मेरा हर मर्माहत उलाहना  
 +
साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा!
  
साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा !
+
ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा
 
+
तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा।
+
 
+
ओ मेरे प्यार ! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा
+
 
+
तो यों नहीं कि मैने बिछोह को कभी भी स्वीकारा ।
+
 
+
+
  
नहीं, नहीं नहीं !
+
नहीं, नहीं नहीं!
 +
</poem>

23:09, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

नहीं, नहीं, नहीं!

मैंने तुम्हें आँखों की ओट किया
पर क्या भुलाने को?
मैंने अपने दर्द को सहलाया
पर क्या उसे सुलाने को?

मेरा हर मर्माहत उलाहना
साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा!

ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा
तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा।

नहीं, नहीं नहीं!