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+ | बस हम न होंगे। | ||
− | + | शायद कभी किसी सपने की दरार में, | |
− | + | किसी भी क्षण भर की याद में, | |
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− | + | बस हम न होंगे। | |
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− | बस हम न होंगे। | + | |
− | + | देवता होंगे, दुष्ट होंगे, | |
− | + | जंगलों को छोड़कर बस्तियों में< | |
− | + | मठ बनाते सन्त होंगे, | |
− | + | दुबकी हुई पवित्रता होगी, | |
− | + | रौब जमाते पाप होंगे, | |
− | + | फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे, | |
− | देवता होंगे, दुष्ट होंगे, | + | बस हम न होंगे। |
− | जंगलों को छोड़कर बस्तियों में< | + | |
− | मठ बनाते सन्त होंगे, | + | |
− | दुबकी हुई पवित्रता होगी, | + | |
− | रौब जमाते पाप होंगे, | + | |
− | फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे, | + | |
− | बस हम न होंगे। | + | |
− | संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे | + | संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे |
बस हम न होंगे। | बस हम न होंगे। | ||
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18:26, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हम न होंगे-
जीवन और उसका अनन्त स्पन्दन,
कड़ी धूप में घास की हरीतिमा,
प्रेम और मंदिरों का पुरातन स्थापत्य,
अक्षर, भाषा और सुन्दर कविताएँ,
इत्यादि, लेकिन, फिर भी सब होंगे-
किलकारी, उदासी और गान सब-
बस हम न होंगे।
शायद कभी किसी सपने की दरार में,
किसी भी क्षण भर की याद में,
किसी शब्द की अनसुनी अन्तर्ध्वनि में-
हमारे होने की हलकी सी छाप बची होगी
बस हम न होंगे।
देवता होंगे, दुष्ट होंगे,
जंगलों को छोड़कर बस्तियों में<
मठ बनाते सन्त होंगे,
दुबकी हुई पवित्रता होगी,
रौब जमाते पाप होंगे,
फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे,
बस हम न होंगे।
संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे
बस हम न होंगे।