Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका |संग्रह=अब भी वसंत को तुम्हारी जरूरत है / अनामि...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=अब भी वसंत को तुम्हारी जरूरत है / अनामिका | |संग्रह=अब भी वसंत को तुम्हारी जरूरत है / अनामिका | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | बरसात का मतलब है | ||
+ | हो जाना दूर और अकेला। | ||
+ | उतरती है सांझ तक बारिश— | ||
+ | लुढ़कती-पुढ़कती, दूरस्थ— | ||
+ | सागर-तट या ऐसी चपटी जगहों से | ||
+ | चढ़ जाती है वापस जन्नत तक | ||
+ | जो इसका घर है पुराना। | ||
− | + | सिर्फ़ जन्नत छोड़ते वक़्त गिरती हैं बूंद-बूंद बारिश | |
− | + | शहर पर। | |
− | + | बरसती हैं बूंदें चहचहाते घंटों में | |
− | + | जब सड़कें अलस्सुबह की ओर करती हैं अपना चेहरा | |
− | + | और दो शरीर | |
− | + | लुढ़क जाते हैं | |
− | + | कहीं भी हताश— | |
− | + | दो लोग जो नफ़रत करते हैं | |
− | + | एक-दूसरे से | |
− | + | सोने को मजबूर होते हैं साथ-साथ। | |
− | + | यही वह जगह है | |
− | + | जहाँ | |
− | + | नदियों से हाथ मिलाता है | |
− | + | अकेलापन। | |
− | + | </poem> | |
− | दो लोग जो नफ़रत करते हैं | + | |
− | एक-दूसरे से | + | |
− | सोने को मजबूर होते हैं साथ-साथ। | + | |
− | यही वह जगह है | + | |
− | जहाँ | + | |
− | नदियों से हाथ मिलाता है | + | |
− | अकेलापन।< | + |
20:45, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बरसात का मतलब है
हो जाना दूर और अकेला।
उतरती है सांझ तक बारिश—
लुढ़कती-पुढ़कती, दूरस्थ—
सागर-तट या ऐसी चपटी जगहों से
चढ़ जाती है वापस जन्नत तक
जो इसका घर है पुराना।
सिर्फ़ जन्नत छोड़ते वक़्त गिरती हैं बूंद-बूंद बारिश
शहर पर।
बरसती हैं बूंदें चहचहाते घंटों में
जब सड़कें अलस्सुबह की ओर करती हैं अपना चेहरा
और दो शरीर
लुढ़क जाते हैं
कहीं भी हताश—
दो लोग जो नफ़रत करते हैं
एक-दूसरे से
सोने को मजबूर होते हैं साथ-साथ।
यही वह जगह है
जहाँ
नदियों से हाथ मिलाता है
अकेलापन।