भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब तो ऐसे नहीं हालात, चलो सो जाएं / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKCatGhazal}} अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं ख़ाब में होगी ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | |||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रविकांत अनमोल | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | <poem> | ||
अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं | अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं | ||
ख़ाब में होगी मुलाकात चलो सो जाएं | ख़ाब में होगी मुलाकात चलो सो जाएं | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 28: | ||
वो जो कहते हैं तो 'अनमोल' मान लो उनकी | वो जो कहते हैं तो 'अनमोल' मान लो उनकी | ||
कुछ तो होगी ज़रूर बात चलो सो जाएं | कुछ तो होगी ज़रूर बात चलो सो जाएं | ||
+ | </poem> |
22:38, 4 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण
अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं
ख़ाब में होगी मुलाकात चलो सो जाएं
रात के साथ चलो ख़ाब-नगर चलते हैं
साथ तारों की है बारात चलो सो जाएं
रात-दिन एक ही होते हैं ज़ुनूं में लेकिन
अब तो ऐसे नहीं हालात चलो सो जाएं
रात की बात कहेगी जो आँख की लाली
फिर से उट्ठेंगे सवालात चलो सो जाएं
नींद भी आज की दुनिया में बड़ी नेमत है
ख़ाब की जब मिले सौगात चलो सो जाएं
फिर से निकलेगी वही बात अपनी बातों में
फिर बहक जांएंगे जज़्बात चलो सो जाएं
वो जो कहते हैं तो 'अनमोल' मान लो उनकी
कुछ तो होगी ज़रूर बात चलो सो जाएं