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"अश्रु-नीर / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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बहता है युग युग से अधीर <br>
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अपनी गति से कर सजल सरल,<br>
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सौरभ-सी लेकर मधुर पीर !<br><br>
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तेरे करुणा-कण से विलसित,
इसमें न ठहरता सलिल-लेश,<br>
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हो तेरी चितवन से विकसित,
इसको न जगाती मधुप-भीर !<br><br>
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छू तेरी श्वासों का समीर !
 
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तेरे करुणा-कण से विलसित,<br>
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हो तेरी चितवन से विकसित,<br>
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छू तेरी श्वासों का समीर ! <br>
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18:24, 13 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर !
दुख से आविल सुख से पंकिल
बुद्बुद से स्वप्नों से फेनिल,
बहता है युग युग से अधीर
जीवन-पथ का दुर्गमतम तल,
अपनी गति से कर सजल सरल,
शीतल करता युग तृषित तीर !
इसमें उपजा यह नीरज सित,
कोमल-कोमल लज्जित मीलित;
सौरभ-सी लेकर मधुर पीर !

इसमें न पंक का चिह्न शेष,
इसमें न ठहरता सलिल-लेश,
इसको न जगाती मधुप-भीर !

तेरे करुणा-कण से विलसित,
हो तेरी चितवन से विकसित,
छू तेरी श्वासों का समीर !