Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह=ग्राम्या / सुमित्रानंदन पं...) |
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| − | जहाँ | + | जहाँ अकाल वृद्ध है यौवन! |
| − | + | सुलभ यहाँ रे कवि को जग में | |
| − | + | युग का नहीं सत्य शिव सुंदर, | |
| − | + | कँप कँप उठते उसके उर की | |
| − | + | व्यथा विमूर्छित वीणा के स्वर! | |
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| − | सुलभ यहाँ रे कवि को जग में | + | |
| − | युग का नहीं सत्य शिव सुंदर, | + | |
| − | कँप कँप उठते उसके उर की | + | |
| − | व्यथा विमूर्छित वीणा के स्वर ! | + | |
13:40, 4 मई 2010 के समय का अवतरण
यहाँ न पल्लव वन में मर्मर,
यहाँ न मधु विहगों में गुंजन,
जीवन का संगीत बन रहा
यहाँ अतृप्त हृदय का रोदन!
यहाँ नहीं शब्दों में बँधती
आदर्शों की प्रतिमा जीवित,
यहाँ व्यर्थ है चित्र गीत में
सुंदरता को करना संचित!
यहाँ धरा का मुख कुरूप है,
कुत्सित गर्हित जन का जीवन,
सुंदरता का मूल्य वहाँ क्या
जहाँ उदर है क्षुब्ध, नग्न तन?-
जहाँ दैन्य जर्जर असंख्य जन
पशु-जघन्य क्षण करते यापन,
कीड़ों-से रेंगते मनुज शिशु,
जहाँ अकाल वृद्ध है यौवन!
सुलभ यहाँ रे कवि को जग में
युग का नहीं सत्य शिव सुंदर,
कँप कँप उठते उसके उर की
व्यथा विमूर्छित वीणा के स्वर!