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"याद नहीं / मनमोहन" के अवतरणों में अंतर

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और उसके बाद क़तई भूल गया था<br><br>
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सिर्फ़ बोलता रहा<br>
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आसानियाँ और मुश्किलें<br><br>
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न कहना आसान है<br>
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और कहना मुश्किल<br>
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लेकिन कहते चले जाना<br>
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न कहने जैसा है<br>
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और काफ़ी आसान है<br><br>
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इसी तरह न रहना आसान है<br>
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और रहना मुश्किल <br><br>
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लेकिन रहते चले जाना<br>
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न रहने जैसा है<br>
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और काफ़ी आसान है<br><br>
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चाहें तो सहने के बारे में भी<br>
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ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है
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20:36, 5 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण

स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ

ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी
याद नहीं निमिष भर की रात थी
या कोई पूरा युग था

स्मृति थी
या स्पर्श में खोया हाथ था
किसी गुनगुने हाथ में

एक तकलीफ़ थी
जिसके भीतर चलता चला गया
जैसे किसी सुरंग में

अजीब ज़िद्दी धुन थी
कि हारता चला गया

दिन को खूँटी पर टाँग दिया था
और उसके बाद क़तई भूल गया था

सिर्फ़ बोलता रहा
या सिर्फ़ सुनता रहा
ठीक-ठीक याद नहीं