"हमारा डम्मी / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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धूप मे पेन बेचती लडकी से १० रुपए का पेन ख़रीद कर | धूप मे पेन बेचती लडकी से १० रुपए का पेन ख़रीद कर | ||
हम समाज के प्रति अपना उतरदायित्व निभाते आए थे | हम समाज के प्रति अपना उतरदायित्व निभाते आए थे |
00:33, 15 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
किसी अलमस्त बेहोशी में हम नेक काम कर दिया करते हैं गाय को आटा
या काले कुते को दो सूखी-बासी रोटी डालने का बेजोड़ काम इसी तरह
धूप मे पेन बेचती लडकी से १० रुपए का पेन ख़रीद कर
हम समाज के प्रति अपना उतरदायित्व निभाते आए थे
हम अपने आप मे कम अजूबे नहीं हैं
पर एक सामान्य आदमी की काया की सीमा मे बँधे
हम बौने हो गए हैं
दुनिया का बड़ा से बड़ा अजायबखाना हमे जगह दे कर धन्य हो जाता
हमें दुनिया की राहों पर खुला छोड़ दिया गया
किसी चमत्कारिक काम को अंजाम देने के लिए
पर हम हारे हुए शतरंज के खिलाड़ी ही साबित हुए
सुबह नहा-धो कर तरोताज़ा हो दफ़्तर जाते
शाम को मँह लटकाए महंगाई को ग़ाली देते हुए
गाल बजाते हुए घर लौट आते
हमारे इस संकीर्ण टाइम-टेबल से ख़ुदा सबक ले तो बेहतर हो
सम्भव है कि वह मनुष्य पर एकतरफ़ा तरस खाते हुए
आगे से मनुष्यता के लिए निर्धारित समय-सारिणी भी भेजे
हम बँधी-बँधाई रूढ़िगत चीज़ों के घोर आदि हैं
यह अलग बात है कि हमे होश आने से पहले बेड़ियों मे बाँध दिया गया था
हम दुबारा इस्तेमाल न आ सकने वाली प्लास्टिक की थैली की तरह थे
हमारे बन्धुओं की योग्यता को सींच कर ऊँचे लोगों ने अपने-अपने घड़े भर लिए
पर हम मिटटी के माधो ही बने रहे
हमारा "यूज एंड थ्रो" के संशाधन में सिमट
कूड़े के ढेर पर फैंका जाना लगभग तय था
हम बेमौत मारे जाने वाले थे
फिर भी हम थे
और थे
और हैं
और रहेंगे
अपनी अरबों-खरबों की जनसँख्या में महफूज़