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झिरहिर-झिरहिर नदी बहे हे, दो परबतवा के बीच। | झिरहिर-झिरहिर नदी बहे हे, दो परबतवा के बीच। |
21:08, 19 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
झिरहिर-झिरहिर नदी बहे हे, दो परबतवा के बीच।
ताही तर गोरी माछर मारे, टिकुला में कवन सिंगार।।१।।
अबहीं त देखलीं में दुई जना हो, ओही रे बभनवाँ के पूत।
ताही देखी गोरी के जिउआ मगन भइले, हुलसी जोबन चोली मोर।।२।।
सुर सुरइतिन बाठिन हे, दिन चारि काजरा नेवार।
मोरा पूता काँच कोमल हे, जोबन जाँति जनि मार।।३।।
पानिन के जरा अंकड़ा हे, बालू रे क्वहिया लागी जाय।
जोबन जँतले राउर बेटा नहीं मरिहें, देहिया धवर होई जाय।।४।।
अगते में काहे ना बारिज दिहलीं सासु हे, राउर बेटा रहितें कुंआर।।५।।
आगर मरबों से छागर हे, अउरो परेउवा जोड़ी हांस।
असकारी पलबों में रउरो बेटवना, कि जइसे चइतवा के सांढ़।।६।।