भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सागर से मेघ / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
छो ("सागर से मेघ / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (बेमियादी) [move=sysop] (बेमियादी))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:30, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
सागर से मेघ उठे
सागर से मेघ।
जब-तब मुँह खोल हँसे
कभी हँसे ढाँके,
मन्द हुए चन्दा के
कहकहे ठहाके,
चटक हुए धरती पर
धान के सुलेख।
गढ़ते फरसे-कुदाल
फिर नई कहानी,
जलधर हलधर
किसमें है कितना पानी!
किसके आँगन होंगे
टीके-अभिषेक?
किसका सावन होगा
किसका होगा कुवार?
दूध-भरी बालों का
देख सकेगा सिंगार!
किन बाँहों में होगी
शरद चाँदनी विशेष?