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भूले बिसरे लिखते
सिलसिले तमाम
नन्हें का ख़त
बड़के भइया के नाम।

इस चिट्ठी को, जैसे-
तार बाँचना
बहना की पालकी ओहार बाँचना,
बापू की पकी हुई मूछों का काँपना
अम्मा की आँखों की-
हार बाँचना,

सुबह-शाम की लीकों
लिपटे भीतर-बाहर
हारे-मनमारे-से
सेहन दालान।

बौराईं आँगन के-
आम की टहनियाँ
चढ़ते फागुन के दिन चार बाँचना,
गुमसुम बैठीं भाभी
टेक कर कुहनियाँ
कंधों पर उतरा अँधियार बाँचना,

देखो जी!
यह खत भी अनदेखा मत करना
घर भर का राम-राम
गाँव का सलाम।