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♦ रचनाकार: अज्ञात
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काला डांडा पीछ बाबा जी
काली च कुएड़ी
बाबाजी, एकुली मैं लगड़ी च ड..र
एकुली-एकुली मैं कनु कैकी जौलो
भावार्थ
--' काले पहाड़ के पीछे, पिताजी!
काला कुहरा छा रहा है ।
पिताजी, मुझे अकेले में डर लगता है ।
अकेले-अकेले मैं ससुराल कैसे जाऊंगी?'