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"माँ की ममता / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर

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भूल कर देह गेह की सब सुधा।
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भूल कर देह-गेह की सब सुधा।
 
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माँ रही नेह में सदा माती।
 
माँ रही नेह में सदा माती।
 
 
जान को वार कर जिलाती है।
 
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पालती है पिला-पिला छाती।।
पालती है पिला पिला छाती।
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देख कर लाल को किलक हँसते।
 
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लख ललक बार-बार ललचाई।
लख ललक बार बार ललचाई।
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कौन माँ भर गई न प्यारों से।
 
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कौन छाती भला न भर आई॥
कौन छाती भला न भर आई।
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माँ कलेजे में बही जैसी कि वह।
 
माँ कलेजे में बही जैसी कि वह।
 
 
प्यार की धारा कहाँ वैसी बही।
 
प्यार की धारा कहाँ वैसी बही।
 
 
कौन हित-माती हमें ऐसी मिली।
 
कौन हित-माती हमें ऐसी मिली।
 
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दूध से किस की भरी छाती रही।।
दूधा से किस की भरी छाती रही।
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नौ महीने पेट में, सह साँसतें।
 
नौ महीने पेट में, सह साँसतें।
 
 
रख जतन से कौन तन-थाती सकी।
 
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मोह में माती हुई माँ के सिवा।
 
मोह में माती हुई माँ के सिवा।
 
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कौन मुँह में दे कभी छाती सकी॥
कौन मुँह में दे कभी छाती सकी।
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प्यार माँ के समान है किस का।
 
प्यार माँ के समान है किस का।
 
 
है कढ़ी धार किस हृदय-तल से।
 
है कढ़ी धार किस हृदय-तल से।
 
 
छातियों मिस हमें दिये किस ने।
 
छातियों मिस हमें दिये किस ने।
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दूध के दो भरे हुए कलसे।।
  
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दूध छाती में भरा, भर बह चला।
 
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आँख बालक और माँ की जब फिरी।
 
आँख बालक और माँ की जब फिरी।
 
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गंगधारा शंभु के सिर से बही।
गंगधारा शंभु के शिर से बही।
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दूध की धारा किसी गिरि से गिरी॥
 
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दूधा की धारा किसी गिरि से गिरी।
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एक माँ में कमाल ऐसा है।
 
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कुंभ को कर दिया कमल जिसने।
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रस भरे फल हमें कहाँ न मिले।
 
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फल दिये दूध से भरे किसने।।
फल दिये दूधा से भरे किसने।
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किस तरह माँ के कमालों को कहें।
 
किस तरह माँ के कमालों को कहें।
 
 
छू उसे हित-पेड़ रहता है हरा।
 
छू उसे हित-पेड़ रहता है हरा।
 
 
है पनपता प्यार तन की छाँह में।
 
है पनपता प्यार तन की छाँह में।
 
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दूध से है छेद छाती का भरा।।
दूधा से है छेद छाती का भरा।
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देख कर अपने लड़ैते लाल को।
 
देख कर अपने लड़ैते लाल को।
 
 
कब नहीं मुखड़ा रहा माँ का खिला।
 
कब नहीं मुखड़ा रहा माँ का खिला।
 
 
प्यार से छाती उछलती ही रही।
 
प्यार से छाती उछलती ही रही।
 
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दूध छाती में छलकता ही मिला॥
दूधा छाती में छलकता ही मिला।
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कौन बेले पर नहीं बनता हितू।
 
कौन बेले पर नहीं बनता हितू।
 
 
भाव अलबेले कहाँ ऐसे मिले।
 
भाव अलबेले कहाँ ऐसे मिले।
 
 
एक माँ के दिल सिवा है कौन दिल।
 
एक माँ के दिल सिवा है कौन दिल।
 
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जाय जो छिला पूत का तलवा छिले।।
जाय जो छिला पूत का तलवा छिले।
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12:43, 18 मार्च 2014 के समय का अवतरण

भूल कर देह-गेह की सब सुधा।
माँ रही नेह में सदा माती।
जान को वार कर जिलाती है।
पालती है पिला-पिला छाती।।

देख कर लाल को किलक हँसते।
लख ललक बार-बार ललचाई।
कौन माँ भर गई न प्यारों से।
कौन छाती भला न भर आई॥

माँ कलेजे में बही जैसी कि वह।
प्यार की धारा कहाँ वैसी बही।
कौन हित-माती हमें ऐसी मिली।
दूध से किस की भरी छाती रही।।

नौ महीने पेट में, सह साँसतें।
रख जतन से कौन तन-थाती सकी।
मोह में माती हुई माँ के सिवा।
कौन मुँह में दे कभी छाती सकी॥

प्यार माँ के समान है किस का।
है कढ़ी धार किस हृदय-तल से।
छातियों मिस हमें दिये किस ने।
दूध के दो भरे हुए कलसे।।

दूध छाती में भरा, भर बह चला।
आँख बालक और माँ की जब फिरी।
गंगधारा शंभु के सिर से बही।
दूध की धारा किसी गिरि से गिरी॥

एक माँ में कमाल ऐसा है।
कुंभ को कर दिया कमल जिसने।
रस भरे फल हमें कहाँ न मिले।
फल दिये दूध से भरे किसने।।

किस तरह माँ के कमालों को कहें।
छू उसे हित-पेड़ रहता है हरा।
है पनपता प्यार तन की छाँह में।
दूध से है छेद छाती का भरा।।

देख कर अपने लड़ैते लाल को।
कब नहीं मुखड़ा रहा माँ का खिला।
प्यार से छाती उछलती ही रही।
दूध छाती में छलकता ही मिला॥

कौन बेले पर नहीं बनता हितू।
भाव अलबेले कहाँ ऐसे मिले।
एक माँ के दिल सिवा है कौन दिल।
जाय जो छिला पूत का तलवा छिले।।