"सिर / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | क्या हुआ पा गये जगह ऊँची। | |
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जो समझ औ बिचार कर न चले। | जो समझ औ बिचार कर न चले। | ||
− | + | सिर! अगर तुम पड़े कुचालों में। | |
− | सिर! अगर तुम पड़े | + | तो हुआ ठीक जो गये कुचले। |
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− | तो हुआ ठीक जो गये | + | |
जो कि ताबे बने रहे सब दिन। | जो कि ताबे बने रहे सब दिन। | ||
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वे सँभल लग गये दिखाने बल। | वे सँभल लग गये दिखाने बल। | ||
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हाथ क्या, उँगलियाँ दबाती हैं। | हाथ क्या, उँगलियाँ दबाती हैं। | ||
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सिर! मिला यह तुम्हें दबे का फल। | सिर! मिला यह तुम्हें दबे का फल। | ||
सोच कर उस की दसा जी हिल गया। | सोच कर उस की दसा जी हिल गया। | ||
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जो कि मुँह के बल गिर ऊँचे गये। | जो कि मुँह के बल गिर ऊँचे गये। | ||
+ | जब बुरे कूचे तुम्हें रुचते रहे। | ||
+ | सिर ! तभी तुम बेतरह कूँचे गये। | ||
− | + | पा जिन्हें धरती उधारती ही रही। | |
− | + | ||
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− | पा जिन्हें | + | |
− | + | ||
लोग जिनके अवतरे उबरे तरे। | लोग जिनके अवतरे उबरे तरे। | ||
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सिर! गिरे तुम जो न उन के पाँव पर। | सिर! गिरे तुम जो न उन के पाँव पर। | ||
− | + | तो बने नर-देह के क्या सिरधरे। | |
− | तो बने नर-देह के क्या | + | |
है जिसे प्रभु की कला सब थल मिली। | है जिसे प्रभु की कला सब थल मिली। | ||
− | + | पत्तियों में, पेड़ में, फल फूल में। | |
− | + | ||
− | + | ||
ली नहीं जो धूल उनके पाँव की। | ली नहीं जो धूल उनके पाँव की। | ||
− | |||
सिर! पड़े तो तुम बड़ी ही भूल में। | सिर! पड़े तो तुम बड़ी ही भूल में। | ||
बात वह भूले न रुचनी चाहिए। | बात वह भूले न रुचनी चाहिए। | ||
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जो कि तुम को बेतरह नीचा करे। | जो कि तुम को बेतरह नीचा करे। | ||
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सिर ! तुम्हीं सिरमौर के सिरमौर हो। | सिर ! तुम्हीं सिरमौर के सिरमौर हो। | ||
− | + | औ तुम्हीं हो सिरधरों के सिरधरे। | |
− | औ तुम्हीं हो | + | |
दे जनम निज गोद में पाला जिन्हें। | दे जनम निज गोद में पाला जिन्हें। | ||
− | |||
क्या पले थे वे कटाने के लिए। | क्या पले थे वे कटाने के लिए। | ||
− | |||
खेद है सुख चाह बेदी पर खुले। | खेद है सुख चाह बेदी पर खुले। | ||
− | |||
सिर! बहुत से बाल तूने बलि दिये। | सिर! बहुत से बाल तूने बलि दिये। | ||
− | बाल में सारे | + | बाल में सारे फ़ुलेलों के भले। |
− | + | ||
सब सराहे फूल चोटी में लसे। | सब सराहे फूल चोटी में लसे। | ||
− | |||
सिर! सुबासित हो सकोगे किस तरह। | सिर! सुबासित हो सकोगे किस तरह। | ||
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जब बुरी रुचि-वास से तुम हो बसे। | जब बुरी रुचि-वास से तुम हो बसे। | ||
− | कब नहीं उस की चली, | + | कब नहीं उस की चली, कुल ब्योंत ही। |
− | + | ||
सब दिनों जिस की बनी बाँदी रही। | सब दिनों जिस की बनी बाँदी रही। | ||
− | |||
माँग पूरी की गई है कब नहीं। | माँग पूरी की गई है कब नहीं। | ||
− | + | सिर! तुम्हारी कब नहीं चाँदी रही। | |
− | सिर! | + | |
सिर! छिपाये छिप न असलियत सकी। | सिर! छिपाये छिप न असलियत सकी। | ||
− | |||
बज सके न सदा बनावट के डगे। | बज सके न सदा बनावट के डगे। | ||
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सब दिनों काले बने कब रह सके। | सब दिनों काले बने कब रह सके। | ||
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बाल उजले बार कितने ही रँगे। | बाल उजले बार कितने ही रँगे। | ||
छोड़ रंगीनी सुधार सादे बनो। | छोड़ रंगीनी सुधार सादे बनो। | ||
− | |||
यह सुझा कर बीज हित का बो चले। | यह सुझा कर बीज हित का बो चले। | ||
− | |||
चोचले करते रहोगे कब तलक। | चोचले करते रहोगे कब तलक। | ||
− | + | सिर! तुम्हारे बाल उजले हो चले। | |
− | सिर! | + | |
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01:08, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
क्या हुआ पा गये जगह ऊँची।
जो समझ औ बिचार कर न चले।
सिर! अगर तुम पड़े कुचालों में।
तो हुआ ठीक जो गये कुचले।
जो कि ताबे बने रहे सब दिन।
वे सँभल लग गये दिखाने बल।
हाथ क्या, उँगलियाँ दबाती हैं।
सिर! मिला यह तुम्हें दबे का फल।
सोच कर उस की दसा जी हिल गया।
जो कि मुँह के बल गिर ऊँचे गये।
जब बुरे कूचे तुम्हें रुचते रहे।
सिर ! तभी तुम बेतरह कूँचे गये।
पा जिन्हें धरती उधारती ही रही।
लोग जिनके अवतरे उबरे तरे।
सिर! गिरे तुम जो न उन के पाँव पर।
तो बने नर-देह के क्या सिरधरे।
है जिसे प्रभु की कला सब थल मिली।
पत्तियों में, पेड़ में, फल फूल में।
ली नहीं जो धूल उनके पाँव की।
सिर! पड़े तो तुम बड़ी ही भूल में।
बात वह भूले न रुचनी चाहिए।
जो कि तुम को बेतरह नीचा करे।
सिर ! तुम्हीं सिरमौर के सिरमौर हो।
औ तुम्हीं हो सिरधरों के सिरधरे।
दे जनम निज गोद में पाला जिन्हें।
क्या पले थे वे कटाने के लिए।
खेद है सुख चाह बेदी पर खुले।
सिर! बहुत से बाल तूने बलि दिये।
बाल में सारे फ़ुलेलों के भले।
सब सराहे फूल चोटी में लसे।
सिर! सुबासित हो सकोगे किस तरह।
जब बुरी रुचि-वास से तुम हो बसे।
कब नहीं उस की चली, कुल ब्योंत ही।
सब दिनों जिस की बनी बाँदी रही।
माँग पूरी की गई है कब नहीं।
सिर! तुम्हारी कब नहीं चाँदी रही।
सिर! छिपाये छिप न असलियत सकी।
बज सके न सदा बनावट के डगे।
सब दिनों काले बने कब रह सके।
बाल उजले बार कितने ही रँगे।
छोड़ रंगीनी सुधार सादे बनो।
यह सुझा कर बीज हित का बो चले।
चोचले करते रहोगे कब तलक।
सिर! तुम्हारे बाल उजले हो चले।