"जीभ / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कट गई, दब गई, गई कुचली। | |
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कौन साँसत हुई नहीं तेरी। | कौन साँसत हुई नहीं तेरी। | ||
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जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को। | जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को। | ||
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दाँत के आस पास दे फेरी। | दाँत के आस पास दे फेरी। | ||
जब बुरे ढंग में गई ढल तू। | जब बुरे ढंग में गई ढल तू। | ||
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फल बुरा तब न किस तरह पाती। | फल बुरा तब न किस तरह पाती। | ||
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बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी। | बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी। | ||
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जीभ तब ऐंठ क्यों न दी जाती। | जीभ तब ऐंठ क्यों न दी जाती। | ||
जब लगी काट छाँट में वह थी। | जब लगी काट छाँट में वह थी। | ||
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तब न क्यों काट छाँट की जाती। | तब न क्यों काट छाँट की जाती। | ||
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जब कतरब्योंत रुच गई उस को। | जब कतरब्योंत रुच गई उस को। | ||
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जीभ तब क्यों कतर न दी जाती। | जीभ तब क्यों कतर न दी जाती। | ||
बिख रहे जो कि घोलती रस में। | बिख रहे जो कि घोलती रस में। | ||
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क्यों उसे रस चखा चखा पालें। | क्यों उसे रस चखा चखा पालें। | ||
− | |||
बात जिससे सदा रही कटती। | बात जिससे सदा रही कटती। | ||
− | |||
क्यों न उस जीभ को कटा डालें। | क्यों न उस जीभ को कटा डालें। | ||
− | बात कड़वी, कड़ी, | + | बात कड़वी, कड़ी, कुढंगी कह। |
− | + | ||
जब रही बीज बैर का बोती। | जब रही बीज बैर का बोती। | ||
− | |||
तब लगी क्यों रही भले मुँह में। | तब लगी क्यों रही भले मुँह में। | ||
− | |||
था भला जीभ गिर गई होती। | था भला जीभ गिर गई होती। | ||
सच, भली रुचि, सनेह, नरमी का। | सच, भली रुचि, सनेह, नरमी का। | ||
− | |||
नाम ही जब कि वह नहीं लेती। | नाम ही जब कि वह नहीं लेती। | ||
− | |||
तब सिवा बद-लगाम बनने के। | तब सिवा बद-लगाम बनने के। | ||
− | |||
चाम की जीभ काम क्या देती। | चाम की जीभ काम क्या देती। | ||
− | क्या गरम | + | क्या गरम दूध और दाँत करें। |
− | + | ||
सब दिनों किस तरह बची रहती। | सब दिनों किस तरह बची रहती। | ||
− | + | जीभ कैसे जले कटे न भला। | |
− | जीभ | + | |
− | + | ||
जब कि थी वह जली कटी कहती। | जब कि थी वह जली कटी कहती। | ||
क्यों न तब तू निकाल ली जाती। | क्यों न तब तू निकाल ली जाती। | ||
− | |||
जब बनी आबरू रही खोती। | जब बनी आबरू रही खोती। | ||
− | |||
क्यों नहीं आग तब लगी तुझ में। | क्यों नहीं आग तब लगी तुझ में। | ||
− | |||
जीभ जब आग तू रही बोती। | जीभ जब आग तू रही बोती। | ||
क्या रही जानती मरम रस का। | क्या रही जानती मरम रस का। | ||
− | |||
जब कि रस ठीक ठीक रख न सकी। | जब कि रस ठीक ठीक रख न सकी। | ||
− | |||
तब किया क्या तमाम रस चख कर। | तब किया क्या तमाम रस चख कर। | ||
− | |||
रामरस जीभ जब कि चख न सकी। | रामरस जीभ जब कि चख न सकी। | ||
जीभ औरों की मिठाई के लिए। | जीभ औरों की मिठाई के लिए। | ||
− | |||
राल भूले भी न बहनी चाहिए। | राल भूले भी न बहनी चाहिए। | ||
− | |||
जब कि कड़वापन तुझे भाता नहीं। | जब कि कड़वापन तुझे भाता नहीं। | ||
− | |||
तब न कड़वी बात कहनी चाहिए। | तब न कड़वी बात कहनी चाहिए। | ||
जब कि प्यारी बात का बरसा न रस। | जब कि प्यारी बात का बरसा न रस। | ||
− | |||
तू बता तब क्या हुआ तेरे हिले। | तू बता तब क्या हुआ तेरे हिले। | ||
− | |||
तरबतर जब जीभ तू करती नहीं। | तरबतर जब जीभ तू करती नहीं। | ||
− | |||
तो तरावट धूल में तेरी मिले। | तो तरावट धूल में तेरी मिले। | ||
पान को कोस लें मगर वह तो। | पान को कोस लें मगर वह तो। | ||
− | |||
है बुरी बान के पड़ी पाले। | है बुरी बान के पड़ी पाले। | ||
− | |||
जब कही बात थी जलनवाली। | जब कही बात थी जलनवाली। | ||
− | |||
क्यों पड़े जीभ में न तब छाले। | क्यों पड़े जीभ में न तब छाले। | ||
बात तू ही बेठिकाने की करे। | बात तू ही बेठिकाने की करे। | ||
− | |||
किस तरह हम तब ठिकाने से रहें। | किस तरह हम तब ठिकाने से रहें। | ||
− | |||
जीभ तूने बात जब बेजड़ कही। | जीभ तूने बात जब बेजड़ कही। | ||
− | + | बात की जड़ तब तुझे कैसे कहें। | |
− | बात की जड़ तब तुझे | + | |
दाँत से बार बार छिद बिधा कर। | दाँत से बार बार छिद बिधा कर। | ||
− | |||
जीभ है फल बुरे बुरे चखती। | जीभ है फल बुरे बुरे चखती। | ||
− | |||
है मगर वह उसे दमक देती। | है मगर वह उसे दमक देती। | ||
− | |||
चाटती, पोंछती, बिमल रखती। | चाटती, पोंछती, बिमल रखती। | ||
क्या भला तीखे रसों को तब चखा। | क्या भला तीखे रसों को तब चखा। | ||
− | |||
जब न उस की काहिली को खो सकी। | जब न उस की काहिली को खो सकी। | ||
− | |||
जाति को तीखी बनाने के लिए। | जाति को तीखी बनाने के लिए। | ||
− | |||
जीभ जब तीखी नहीं तू हो सकी। | जीभ जब तीखी नहीं तू हो सकी। | ||
क्या रहा सामने घड़ा रस का। | क्या रहा सामने घड़ा रस का। | ||
− | |||
जब नहीं एक बूँद पाती तू। | जब नहीं एक बूँद पाती तू। | ||
− | |||
पत गँवा लोप कर रसीलापन। | पत गँवा लोप कर रसीलापन। | ||
− | |||
है अबस जीभ लपलपाती तू। | है अबस जीभ लपलपाती तू। | ||
थी जहाँ सूख तू वहीं जाती। | थी जहाँ सूख तू वहीं जाती। | ||
− | |||
पड़ बिपद में भली न उकताई। | पड़ बिपद में भली न उकताई। | ||
− | |||
प्यास के बढ़ गये बिकल हो कर। | प्यास के बढ़ गये बिकल हो कर। | ||
− | |||
किसलिए जीभ तू निकल आई। | किसलिए जीभ तू निकल आई। | ||
किसलिए तब तू न सौ टुकड़े हुई। | किसलिए तब तू न सौ टुकड़े हुई। | ||
− | + | तब बिपद कैसे नहीं तुझ पर ढही। | |
− | तब बिपद | + | |
− | + | ||
काट देने को कलेजा और का। | काट देने को कलेजा और का। | ||
− | |||
जीभ जब तलवार बनती तू रही। | जीभ जब तलवार बनती तू रही। | ||
जीभ तू थी लाल होती पान से। | जीभ तू थी लाल होती पान से। | ||
− | |||
पर न जाना तू किसी का काल थी। | पर न जाना तू किसी का काल थी। | ||
− | |||
धूल में तेरा ललाना तब मिले। | धूल में तेरा ललाना तब मिले। | ||
− | |||
तू लहू से जब किसी के लाल थी। | तू लहू से जब किसी के लाल थी। | ||
रुच भले ही जाय खारापन तुझे। | रुच भले ही जाय खारापन तुझे। | ||
− | |||
पर खरी बातें भला किसने सहीं। | पर खरी बातें भला किसने सहीं। | ||
− | |||
जीभ तुझ को चाहिए था सोचना। | जीभ तुझ को चाहिए था सोचना। | ||
− | |||
एक खारापन खरापन है नहीं। | एक खारापन खरापन है नहीं। | ||
सब रसों में जब कि मीठा रस जँचा। | सब रसों में जब कि मीठा रस जँचा। | ||
− | + | और तू सब दिन अधिक उस में सनी। | |
− | और तू सब दिन | + | |
− | + | ||
जीभ तो है चूक तेरी कम नहीं। | जीभ तो है चूक तेरी कम नहीं। | ||
− | |||
जो न मीठा बोल कर मीठी बनी। | जो न मीठा बोल कर मीठी बनी। | ||
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11:09, 19 मार्च 2014 के समय का अवतरण
कट गई, दब गई, गई कुचली।
कौन साँसत हुई नहीं तेरी।
जीभ तू सोच क्या मिला तुझ को।
दाँत के आस पास दे फेरी।
जब बुरे ढंग में गई ढल तू।
फल बुरा तब न किस तरह पाती।
बोलती ऐंठ ऐंठ कर जब थी।
जीभ तब ऐंठ क्यों न दी जाती।
जब लगी काट छाँट में वह थी।
तब न क्यों काट छाँट की जाती।
जब कतरब्योंत रुच गई उस को।
जीभ तब क्यों कतर न दी जाती।
बिख रहे जो कि घोलती रस में।
क्यों उसे रस चखा चखा पालें।
बात जिससे सदा रही कटती।
क्यों न उस जीभ को कटा डालें।
बात कड़वी, कड़ी, कुढंगी कह।
जब रही बीज बैर का बोती।
तब लगी क्यों रही भले मुँह में।
था भला जीभ गिर गई होती।
सच, भली रुचि, सनेह, नरमी का।
नाम ही जब कि वह नहीं लेती।
तब सिवा बद-लगाम बनने के।
चाम की जीभ काम क्या देती।
क्या गरम दूध और दाँत करें।
सब दिनों किस तरह बची रहती।
जीभ कैसे जले कटे न भला।
जब कि थी वह जली कटी कहती।
क्यों न तब तू निकाल ली जाती।
जब बनी आबरू रही खोती।
क्यों नहीं आग तब लगी तुझ में।
जीभ जब आग तू रही बोती।
क्या रही जानती मरम रस का।
जब कि रस ठीक ठीक रख न सकी।
तब किया क्या तमाम रस चख कर।
रामरस जीभ जब कि चख न सकी।
जीभ औरों की मिठाई के लिए।
राल भूले भी न बहनी चाहिए।
जब कि कड़वापन तुझे भाता नहीं।
तब न कड़वी बात कहनी चाहिए।
जब कि प्यारी बात का बरसा न रस।
तू बता तब क्या हुआ तेरे हिले।
तरबतर जब जीभ तू करती नहीं।
तो तरावट धूल में तेरी मिले।
पान को कोस लें मगर वह तो।
है बुरी बान के पड़ी पाले।
जब कही बात थी जलनवाली।
क्यों पड़े जीभ में न तब छाले।
बात तू ही बेठिकाने की करे।
किस तरह हम तब ठिकाने से रहें।
जीभ तूने बात जब बेजड़ कही।
बात की जड़ तब तुझे कैसे कहें।
दाँत से बार बार छिद बिधा कर।
जीभ है फल बुरे बुरे चखती।
है मगर वह उसे दमक देती।
चाटती, पोंछती, बिमल रखती।
क्या भला तीखे रसों को तब चखा।
जब न उस की काहिली को खो सकी।
जाति को तीखी बनाने के लिए।
जीभ जब तीखी नहीं तू हो सकी।
क्या रहा सामने घड़ा रस का।
जब नहीं एक बूँद पाती तू।
पत गँवा लोप कर रसीलापन।
है अबस जीभ लपलपाती तू।
थी जहाँ सूख तू वहीं जाती।
पड़ बिपद में भली न उकताई।
प्यास के बढ़ गये बिकल हो कर।
किसलिए जीभ तू निकल आई।
किसलिए तब तू न सौ टुकड़े हुई।
तब बिपद कैसे नहीं तुझ पर ढही।
काट देने को कलेजा और का।
जीभ जब तलवार बनती तू रही।
जीभ तू थी लाल होती पान से।
पर न जाना तू किसी का काल थी।
धूल में तेरा ललाना तब मिले।
तू लहू से जब किसी के लाल थी।
रुच भले ही जाय खारापन तुझे।
पर खरी बातें भला किसने सहीं।
जीभ तुझ को चाहिए था सोचना।
एक खारापन खरापन है नहीं।
सब रसों में जब कि मीठा रस जँचा।
और तू सब दिन अधिक उस में सनी।
जीभ तो है चूक तेरी कम नहीं।
जो न मीठा बोल कर मीठी बनी।