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"वोट / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
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हैं उठाते हाथ उठते बैठते। | हैं उठाते हाथ उठते बैठते। | ||
वोट देने से उन्हें मतलब रहा। | वोट देने से उन्हें मतलब रहा। | ||
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एतबारों को न क्यों लेवें उठा। | एतबारों को न क्यों लेवें उठा। | ||
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क्यों न उन पर हाथ हम देवें उठा। | क्यों न उन पर हाथ हम देवें उठा। | ||
वोट देने का निकम्मा ढंग हो। | वोट देने का निकम्मा ढंग हो। | ||
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है उन्हें बेआबरू करता न कम। | है उन्हें बेआबरू करता न कम। | ||
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हैं उठाते तो उठायें हाथ वे। | हैं उठाते तो उठायें हाथ वे। | ||
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क्यों उठा देवें पकड़ कर हाथ हम। | क्यों उठा देवें पकड़ कर हाथ हम। | ||
वोट की क्या चोट लगती है नहीं। | वोट की क्या चोट लगती है नहीं। | ||
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क्यों कमीने बन कमाते हैं टका। | क्यों कमीने बन कमाते हैं टका। | ||
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नीचपन से जब लदा था बेतरह। | नीचपन से जब लदा था बेतरह। | ||
− | + | तब उठाये हाथ कैसे उठ सका। | |
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वोट दें पर खोट से बचते रहें। | वोट दें पर खोट से बचते रहें। | ||
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क्यों करें वह, लिम लगे जिस के किये। | क्यों करें वह, लिम लगे जिस के किये। | ||
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जब कि ऊपर मुँह न उठ सकता रहा। | जब कि ऊपर मुँह न उठ सकता रहा। | ||
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हाथ ऊपर हैं उठाते किस लिए। | हाथ ऊपर हैं उठाते किस लिए। | ||
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19:24, 23 मार्च 2014 के समय का अवतरण
वोट देते हैं टके की ओट में।
हैं सभाओं में बहुत ही ऐंठते।
कुछ उठल्लू लोग ऐसे हैं कि जो।
हैं उठाते हाथ उठते बैठते।
वोट देने से उन्हें मतलब रहा।
एतबारों को न क्यों लेवें उठा।
वे उठाते हाथ यों ही हैं सदा।
क्यों न उन पर हाथ हम देवें उठा।
वोट देने का निकम्मा ढंग हो।
है उन्हें बेआबरू करता न कम।
हैं उठाते तो उठायें हाथ वे।
क्यों उठा देवें पकड़ कर हाथ हम।
वोट की क्या चोट लगती है नहीं।
क्यों कमीने बन कमाते हैं टका।
नीचपन से जब लदा था बेतरह।
तब उठाये हाथ कैसे उठ सका।
वोट दें पर खोट से बचते रहें।
क्यों करें वह, लिम लगे जिस के किये।
जब कि ऊपर मुँह न उठ सकता रहा।
हाथ ऊपर हैं उठाते किस लिए।