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− | रस जैसे मौसम | + |
12:19, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
बीते दिन
मैं भूल नहीं पाता,
था कोई जो
मुझे देखकर
मई जून की तेज़ धूप में
मेरे आगे हो जाता था
बादल, पेड़, खुला छाता ।
मन से जुड़ता
चुटकी लेता
ताने कसता था,
खिल उठता था ताल
चाँद पानी में हँसता था
मैं उसकी आँखों में सोता
वह मेरी साँसों में गाता ।
कैसे-कैसे शहर और
कैसी यात्राएँ हैं,
तेज़ धार में हाथ थामकर
साथ नहाए हैं
कितना सहज समर्पण था वह
कैसा था स्वाभाविक नाता
कैसी-कैसी सीमाएँ थीं
कैसे घेरे थे,
शामें थीं रसवंत और
जीवंत सबेरे थे
तन जैसे लहराता रहता
रस जैसे मौसम बरसाता ।