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"काई / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
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टुण्ड्रा प्रदेश में | टुण्ड्रा प्रदेश में | ||
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जहाँ कठोर ठंडी हवाएँ चलती हैं | जहाँ कठोर ठंडी हवाएँ चलती हैं | ||
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अंगुल भर ज़मीन भी दिखाई नहीं देती | अंगुल भर ज़मीन भी दिखाई नहीं देती | ||
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सिर्फ़ बर्फ़ ही बर्फ़ है जहाँ चारों ओर | सिर्फ़ बर्फ़ ही बर्फ़ है जहाँ चारों ओर | ||
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फूल, पत्तियाँ, पेड़ जैसी कोई चीज़ नहीं | फूल, पत्तियाँ, पेड़ जैसी कोई चीज़ नहीं | ||
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मैंने धड़कते देखा वहाँ जीवन | मैंने धड़कते देखा वहाँ जीवन | ||
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काई के रूप में | काई के रूप में | ||
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और वहाँ | और वहाँ | ||
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फटा था विशाल एक ज्वालामुखी जहाँ | फटा था विशाल एक ज्वालामुखी जहाँ | ||
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धुआँ ही धुआँ था, लावा ही लावा चारों ओर | धुआँ ही धुआँ था, लावा ही लावा चारों ओर | ||
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आसमान में बादल भी करते नहीं थे शोर | आसमान में बादल भी करते नहीं थे शोर | ||
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मैंने देखा वहाँ भी जीवन-फूल खिला | मैंने देखा वहाँ भी जीवन-फूल खिला | ||
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काई के रूप में | काई के रूप में | ||
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काई को प्रकाश नहीं चाहिए | काई को प्रकाश नहीं चाहिए | ||
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कोई भोजन, सांत्वना, कोई आस नहीं चाहिए | कोई भोजन, सांत्वना, कोई आस नहीं चाहिए | ||
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कहीं भी उग आती है वह | कहीं भी उग आती है वह | ||
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कैसी भी हालत हो, कैसा भी मौसम हो | कैसी भी हालत हो, कैसा भी मौसम हो | ||
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जीवन हो कैसा भी, देती है सुख | जीवन हो कैसा भी, देती है सुख | ||
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जब से मैंने ख़ुद को काई जैसा ढाला | जब से मैंने ख़ुद को काई जैसा ढाला | ||
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भूल गया मैं इस दुनिया के सारे दुख | भूल गया मैं इस दुनिया के सारे दुख | ||
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21:54, 7 मई 2010 के समय का अवतरण
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टुण्ड्रा प्रदेश में
जहाँ कठोर ठंडी हवाएँ चलती हैं
अंगुल भर ज़मीन भी दिखाई नहीं देती
सिर्फ़ बर्फ़ ही बर्फ़ है जहाँ चारों ओर
अँधेरे का साम्राज्य है, होती नहीं है भोर
फूल, पत्तियाँ, पेड़ जैसी कोई चीज़ नहीं
मैंने धड़कते देखा वहाँ जीवन
काई के रूप में
और वहाँ
फटा था विशाल एक ज्वालामुखी जहाँ
धुआँ ही धुआँ था, लावा ही लावा चारों ओर
आसमान में बादल भी करते नहीं थे शोर
मैंने देखा वहाँ भी जीवन-फूल खिला
काई के रूप में
काई को प्रकाश नहीं चाहिए
कोई भोजन, सांत्वना, कोई आस नहीं चाहिए
कहीं भी उग आती है वह
कैसी भी हालत हो, कैसा भी मौसम हो
जीवन हो कैसा भी, देती है सुख
जब से मैंने ख़ुद को काई जैसा ढाला
भूल गया मैं इस दुनिया के सारे दुख