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"अशान्तिकाल का गीत / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर

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समय कैसा आया है यह, मौसम हो गया सर्द
 
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भूल गए हम सारी पीड़ा, भूल गए सब दर्द
 
भूल गए हम सारी पीड़ा, भूल गए सब दर्द
 
 
मुँह बन्द कर सब सह जाते हैं, करते नहीं विरोध
 
मुँह बन्द कर सब सह जाते हैं, करते नहीं विरोध
 
 
कहाँ गया मनोबल हमारा, कहाँ गया वह बोध
 
कहाँ गया मनोबल हमारा, कहाँ गया वह बोध
 
  
 
क्यों रूसी जन चुपचाप सहे अब, शत्रु का अतिचार
 
क्यों रूसी जन चुपचाप सहे अब, शत्रु का अतिचार
 
 
क्यों करता वह अपनों से ही, अति-पातक व्यवहार
 
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क्यों विदेशियों पर करते हम, अब पूरा विश्वास
 
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और स्वजनों को नकारते, करते उनका उपहास ?
 
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21:47, 7 मई 2010 के समय का अवतरण

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»  अशान्तिकाल का गीत

समय कैसा आया है यह, मौसम हो गया सर्द
भूल गए हम सारी पीड़ा, भूल गए सब दर्द
मुँह बन्द कर सब सह जाते हैं, करते नहीं विरोध
कहाँ गया मनोबल हमारा, कहाँ गया वह बोध

क्यों रूसी जन चुपचाप सहे अब, शत्रु का अतिचार
क्यों करता वह अपनों से ही, अति-पातक व्यवहार
क्यों विदेशियों पर करते हम, अब पूरा विश्वास
और स्वजनों को नकारते, करते उनका उपहास ?