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"शऊरे जात ने ये रस्म भी निबाही थी / शहजाद अहमद" के अवतरणों में अंतर
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शऊरे जात ने ये रस्म भी निबाही थी | शऊरे जात ने ये रस्म भी निबाही थी | ||
− | उसी को क़त्ल किया जिसने | + | उसी को क़त्ल किया जिसने ख़ैर चाही थी |
− | + | तुम्हीं बताओ मैं अपने हक़ में क्या कहता | |
− | मेरे | + | मेरे खिलाफ़ भरे शहर की गवाही थी |
− | कई चरागनिहाँ थे | + | कई चरागनिहाँ थे चराग़ के पीछे |
जिसे निगाह समझते हो कमनिगाही थी | जिसे निगाह समझते हो कमनिगाही थी | ||
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इसीलिए तो ज़माने से बेनियाज़ था मैं | इसीलिए तो ज़माने से बेनियाज़ था मैं | ||
− | मेरे | + | मेरे वजूद के अन्दर मेरी तबाही थी |
− | तेरी | + | तेरी ज़न्नत से निकाला हुआ इन्सान हूँ मैं |
− | मेर ऐजाज़ अज़ल ही से | + | मेर ऐजाज़ अज़ल ही से ख़ताकारी है |
दो बलायें मेरी आँखों का मुकद्दर ‘शहजाद’ | दो बलायें मेरी आँखों का मुकद्दर ‘शहजाद’ | ||
एक तो नींद है और दूसरे बेदारी है | एक तो नींद है और दूसरे बेदारी है | ||
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18:13, 19 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
शऊरे जात ने ये रस्म भी निबाही थी
उसी को क़त्ल किया जिसने ख़ैर चाही थी
तुम्हीं बताओ मैं अपने हक़ में क्या कहता
मेरे खिलाफ़ भरे शहर की गवाही थी
कई चरागनिहाँ थे चराग़ के पीछे
जिसे निगाह समझते हो कमनिगाही थी
तेरे ही लश्करियों ने उसे उजाड़ दिया
वो सरज़मी जहाँ तेरी बादशाही थी
इसीलिए तो ज़माने से बेनियाज़ था मैं
मेरे वजूद के अन्दर मेरी तबाही थी
तेरी ज़न्नत से निकाला हुआ इन्सान हूँ मैं
मेर ऐजाज़ अज़ल ही से ख़ताकारी है
दो बलायें मेरी आँखों का मुकद्दर ‘शहजाद’
एक तो नींद है और दूसरे बेदारी है