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21:11, 3 जून 2014 के समय का अवतरण
सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे
कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे
ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे
हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे
बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे
मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे