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09:08, 17 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण
तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी
- मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो ।
कह सकते थे तुम सब कड़वी, मीठी तीखी ।
- प्रखर काल की धारा पर तुम जमे हुए हो ।
- और वृक्ष गिर गए मगर तुम थमे हुए हो ।
- कभी राम से अपना कुछ भी नहीं दुराया,
- देखा, तुम उन के चरणों पर नमे हुए हो ।
- विश्व बदर था हाथ तुम्हारे उक्त फुराया,
- तेज तुम्हारा था कि अमंगल वृक्ष झुराया,
- मंगल का तरु उगा; देख कर उसकी छाया,
- विघ्न विपद के घन सरके, मुँह नहीं चुराया ।
- आठों पहर राम के रहे, राम गुन गाया ।
यज्ञ रहा, तप रहा तुम्हारा जीवन भू पर ।
भक्त हुए, उठ गए राम से भी, यों ऊपर ।