भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ठण्डा लोहा (कविता) / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धर्मवीर भारती |संग्रह=ठण्डा लोहा / धर्मवीर भारती }} ठं...)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=ठण्डा लोहा / धर्मवीर भारती  
 
|संग्रह=ठण्डा लोहा / धर्मवीर भारती  
 
}}
 
}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा!
 +
मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा!
  
 +
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर
 +
मेरे गीत भरे होठों पर
 +
मेरी दर्द भरी आत्मा पर
 +
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  स्वप्न नहीं अब
 +
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  गीत नहीं अब
 +
&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp;  दर्द नहीं अब
 +
एक पर्त ठंडे लोहे की
 +
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ -
 +
हार मान लूँ -
 +
यही शर्त ठंडे लोहे की
  
ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा !<br>
+
ओ मेरी आत्मा की संगिनी!  
मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा !
+
तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन
 +
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा
 +
कौन अड़ा है?
 +
&nbsp;&nbsp; &nbsp;  ठंडा लोहा!  
 +
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को 
 +
कुचलने कौन खड़ा है ?
 +
&nbsp;&nbsp; &nbsp; ठंडा लोहा!  
  
मेरी स्वप्न भरी पलकों पर<br>
+
ओ मेरी आत्मा की संगिनी!  
मेरे गीत भरे होठों पर<br>
+
अगर जिंदगी की कारा में   
मेरी दर्द भरी आत्मा पर<br>
+
कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ  
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  स्वप्न नहीं अब<br>
+
और न कोई उत्तर पाओ  
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  गीत नहीं अब<br>
+
यही समझना कोई इसको धीरे धीरे निगल चुका है  
&nbsp;&nbsp;&nbsp; &nbsp;  दर्द नहीं अब<br>
+
इस बस्ती में दीप जलाने वाला नहीं बचा है  
एक पर्त ठंडे लोहे की<br>
+
&nbsp;  &nbsp;    सूरज और सितारे ठंढे  
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ - <br>
+
&nbsp;&nbsp;&nbsp;  राहे सूनी   
हार मान लूँ - <br>
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  विवश हवाएं  
यही शर्त ठंडे लोहे की <br>
+
&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp;  शीश झुकाए खड़ी मौन हैं  
 
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; &nbsp;  बचा कौन है?  
 
+
&nbsp;ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा!
ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! <br>
+
</poem>
तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन <br>
+
[https://youtu.be/MKXZKpDWwG4 यू ट्यूब पर सुने]
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा <br>
+
कौन अड़ा है ? <br>
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp;  ठंडा लोहा ! <br>
+
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को  <br>
+
कुचलने कौन खड़ा है ?<br>
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp;  ठंडा लोहा ! <br>
+
 
+
 
+
 
+
 
+
ओ मेरी आत्मा की संगिनी ! <br>
+
अगर जिंदगी की कारा में  <br>
+
कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ <br>
+
और न कोई उत्तर पाओ <br>
+
यही समझना कोई इसको धीरे धीरे निगल चुका है <br>
+
इस बस्ती में दीप जलाने वाला नहीं बचा है <br>
+
&nbsp;  &nbsp;    सूरज और सितारे ठंढे <br>
+
&nbsp;&nbsp;&nbsp;  राहे सूनी  <br>
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp;  विवश हवाएं <br>
+
&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp;  शीश झुकाए खड़ी मौन हैं <br>
+
&nbsp;&nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp; &nbsp;&nbsp; &nbsp;  बचा कौन है ? <br>
+
&nbsp; ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा !<br>
+

07:57, 4 जून 2019 के समय का अवतरण

ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा!
मेरी दुखती हुई रगों पर ठंडा लोहा!

मेरी स्वप्न भरी पलकों पर
मेरे गीत भरे होठों पर
मेरी दर्द भरी आत्मा पर
       स्वप्न नहीं अब
       गीत नहीं अब
      दर्द नहीं अब
एक पर्त ठंडे लोहे की
मैं जम कर लोहा बन जाऊँ -
हार मान लूँ -
यही शर्त ठंडे लोहे की

ओ मेरी आत्मा की संगिनी!
तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा
कौन अड़ा है?
     ठंडा लोहा!
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को
कुचलने कौन खड़ा है ?
     ठंडा लोहा!

ओ मेरी आत्मा की संगिनी!
अगर जिंदगी की कारा में
कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ
और न कोई उत्तर पाओ
यही समझना कोई इसको धीरे धीरे निगल चुका है
इस बस्ती में दीप जलाने वाला नहीं बचा है
    सूरज और सितारे ठंढे
    राहे सूनी
       विवश हवाएं
             शीश झुकाए खड़ी मौन हैं
              बचा कौन है?
 ठंडा लोहा! ठंडा लोहा! ठंडा लोहा!

यू ट्यूब पर सुने