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"परम्परा / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पहले उस ने हमारी स्मृति पर डंडे बरसाए | |
− | + | और कहा - 'असल में यह तुम्हारी स्मृति है' | |
− | + | फिर उस ने हमारे विवेक को सुन्न किया | |
− | + | और कहा - 'अब जा कर हुए तुम विवेकवान' | |
− | पहले उस ने हमारी स्मृति पर डंडे बरसाए | + | फिर उस ने हमारी आंखों पर पट्टी बांधी |
− | और कहा - 'असल में यह तुम्हारी स्मृति है' | + | और कहा - 'चलो अब उपनिषद पढो' |
− | फिर उस ने हमारे विवेक को सुन्न किया | + | फिर उस ने अपनी सजी हुई डोंगी हमारे रक्त की |
− | और कहा - 'अब जा कर हुए तुम विवेकवान' | + | नदी में उतार दी |
− | फिर उस ने हमारी आंखों पर पट्टी बांधी | + | |
− | और कहा - 'चलो अब उपनिषद पढो' | + | |
− | फिर उस ने अपनी सजी हुई डोंगी हमारे रक्त की | + | |
− | नदी में उतार दी | + | |
और कहा - 'अब अपनी तो यही है परम्परा'। | और कहा - 'अब अपनी तो यही है परम्परा'। | ||
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17:06, 11 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
पहले उस ने हमारी स्मृति पर डंडे बरसाए
और कहा - 'असल में यह तुम्हारी स्मृति है'
फिर उस ने हमारे विवेक को सुन्न किया
और कहा - 'अब जा कर हुए तुम विवेकवान'
फिर उस ने हमारी आंखों पर पट्टी बांधी
और कहा - 'चलो अब उपनिषद पढो'
फिर उस ने अपनी सजी हुई डोंगी हमारे रक्त की
नदी में उतार दी
और कहा - 'अब अपनी तो यही है परम्परा'।