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सध्यः अहाँ / कालीकान्त झा ‘बूच’
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10:55, 18 जुलाई 2014
विहुँसल ठोर विवश भऽ विजुकल
मादक नैन नोरक नपना एहि जीवन मे
अछि के कतऽ श्रृंगार सजाओत
दुनियाँ हमर एकातक गहवर
भेल जिअत मुँरूतक स्थपना एहि जीवन मे
दीप वारि अहाँ द्वारि जड़यलहुँ
घऽर हम लोकक अगितपना एहि जीवन मे
</poem>
Sharda suman
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