"सुधियाँ गुमनाम / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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ऊँचाई पर पल भर को ठहर गई | ऊँचाई पर पल भर को ठहर गई | ||
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बेच गई बनजारिन धूप | बेच गई बनजारिन धूप | ||
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माँझी के गीत क्या रुके | माँझी के गीत क्या रुके | ||
चपुआ ने रोक दिए पाँव | चपुआ ने रोक दिए पाँव | ||
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+ | तट पर | ||
ताबीज़-सी बँधी पानी की पालकी | ताबीज़-सी बँधी पानी की पालकी | ||
− | + | ललाम | |
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घाटी से घण्टियाँ चलीं | घाटी से घण्टियाँ चलीं | ||
मटमैले गाँवों की ओर | मटमैले गाँवों की ओर | ||
लिपट गई प्राण-गाँसिनी | लिपट गई प्राण-गाँसिनी | ||
जल-भीनी बंसी की डोर | जल-भीनी बंसी की डोर | ||
− | + | ||
+ | मौन हुई | ||
महराबों पर चहक भरी सुधियाँ | महराबों पर चहक भरी सुधियाँ | ||
− | + | गुमनाम | |
+ | |||
चरण धरे अँधियारे ने | चरण धरे अँधियारे ने | ||
टूट रही पगडण्डी दूर | टूट रही पगडण्डी दूर | ||
नभ दृग में मोती झलका | नभ दृग में मोती झलका | ||
सिमट गया सन्ध्या सिन्दूर | सिमट गया सन्ध्या सिन्दूर | ||
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+ | दिन की | ||
अभिव्यक्ति पर लगा अनबूझी रात का | अभिव्यक्ति पर लगा अनबूझी रात का | ||
− | + | विराम ! | |
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18:59, 20 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
पर्वत की
ऊँचाई पर पल भर को ठहर गई
शाम
बेच गई बनजारिन धूप
पेड़ों की बड़ी-बड़ी छाँव
माँझी के गीत क्या रुके
चपुआ ने रोक दिए पाँव
तट पर
ताबीज़-सी बँधी पानी की पालकी
ललाम
घाटी से घण्टियाँ चलीं
मटमैले गाँवों की ओर
लिपट गई प्राण-गाँसिनी
जल-भीनी बंसी की डोर
मौन हुई
महराबों पर चहक भरी सुधियाँ
गुमनाम
चरण धरे अँधियारे ने
टूट रही पगडण्डी दूर
नभ दृग में मोती झलका
सिमट गया सन्ध्या सिन्दूर
दिन की
अभिव्यक्ति पर लगा अनबूझी रात का
विराम !