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"तूतनख़ामेन के लिए-15 / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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देह
दीनार नहीं है
कि उसे सहेज कर रख लिया जाए
आगत पीढ़ियों के लिए
मगर यही किया
किया या हुआ
तूतन के साथ
परम्परा के निर्वाह में
देह से लिपटा रहा
पेड़ से साँप की तरह
तूतन का सोच
अमरत्व की चाह में
भूलकर
कि सदियों के लिए ताबूत में लेटकर नहीं,
वरन,
इतिहास के शिलाखंड पर
हलकी-सी खरोंच से भी
अमर हो जाया करते हैं आदमी ।