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बिटिया / अनुज कुमार

3 bytes added, 07:24, 22 अक्टूबर 2014
<poem>
माना मैं बड़ी नहीं,
इतनी कि फ़लसफ़े झाड झाड़ सकूँ,
भावों के पूल खड़े कर,
जमा कर सकूँ,
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