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14:55, 20 फ़रवरी 2015 के समय का अवतरण
अपना वुजूद बाइसे-तूफ़ां हुआ तो है I
ज़ालिम को आज फ़िक्रे-गरेबां हुआ तो है II
हमदम सरों के ज़ख़्म न गिन हमपे नाज़ कर,
अपने ही दम-क़दम से चराग़ां हुआ तो है I
महफ़िल में जिसका नाम न लेने की शर्त थी,
सहरा में उसका नाम नुमायां हुआ तो है I
बदलाव कोई ऐसा हँसी-खेल भी नहीं
वो बुत अगरचे ज़लज़लासामां हुआ तो है I
रहबर करिश्मासाज़ था कैसे न मानें सोज़
उसके जतन से बाग़ बयाबां हुआ तो है II