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(श्री मैथिलीशरण गुप्त का महाकाव्य साकेत का यूनीकोड हिंदी पाठ)
 
 
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साकेत
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राम, तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है।
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कोई कवि बन जाए, सहज संभाव्य है।
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श्री मैथिलीशरण गुप्त
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मानस-मुद्रण, झांसी में
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श्री सुमित्रानंदन गुप्त द्वारा मुद्रित।
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संवत 2036 विक्रमी
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मूल्य 18.00 रुपए
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साहित्य-सदन
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चिरगांव (झांसी)
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समर्पण
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पितः, आज उसको हुए अष्टाविंशति वर्ष,
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दीपावली - प्रकाश में जब तुम गए सहर्ष।
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भूल गए बहु दुख-सुख, निरानंद-आनंद;
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शैशव में तुमसे सुने याद रहे ये छंद -
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"हम चाकर रघुवर के, पटौ लिखौ दरबार;
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अब तुलसी का होहिंगे नर के मनसबदार?
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तुलसी अपने राम को रीझ भजो कै खीज;
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उलटो-सूधो ऊगि है खेत परे को बीज।
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बनें सो रघुवर सों बनें, कै बिगरे भरपूर;
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तुलसी बनें जो और सों, ता बनिबे में घूर।
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चातक सुतहिं सिखावहीं, आन धर्म जिन लेहु;
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मेरे कुल की बानि है स्वांग बूंद सों नेहु।"
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स्वयं तुम्हारा वह कथन भूला नहीं ललाम-
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"वहां कल्पना भी सफल, जहां हमारे राम।"
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तुमने इस जन के लिए क्या क्या किया न हाय!
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बना तुम्हारी तृप्ति का मुझसे कौन उपाय?
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तुम दयालु थे दे गए कविता का वरदान।
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उसके फल का पिंड यह लो निज प्रभु गुणगान।
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आज श्राद्ध के दिन तुम्हें, श्रद्धा-भक्ति-समेत,
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अर्पण करता हूं यही निज कवि-धन 'साकेत'।
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अनुचर-
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मैथिलीशरण
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दीपावली 1988
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23:26, 12 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

इस प्रोजेक्ट में साकेत के तृतीय सर्ग तक का कुछ योगदान हो चुका है। आगे योगदान करने से पहले देख लें कि प्रोजेक्ट कहाँ तक बढ चुका है। देखने के लिये यहां क्लिक करें >>> मैथिलीशरण गुप्त